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वाक् देवी हे कलामयी हे सुबुद्धि सुकामिनी
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीड परायी जाणे रे ।
उठ खड़ा हो लक्ष्मण भैया जी ना लगे, लखनवा नही जाना की जी ना लगे ॥
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है ।
उनकी रेहमत का झूमर सजा है । मुरलीवाले की महफिल सजी है ॥
ऊँचे ऊँचे पर्वत पे, शारदा माँ का डेरा है,
ऊँचे ऊँचे पहाड़ो पे, मैया जी का बसेरा है,
ऊँचे पर्वत चढ़कर जो, तेरे मंदिर आते हैं,
उलझ मत दिल बहारो में बहारो का भरोसा क्या, सहारे छुट जाते है सहरो का बरोसा क्या
उलझ मत दिल बहारो में, बहारो का भरोसा क्या,