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श्री पद्मावती अम्मावरी मंदिर, जिसे लोग अल्मेलुमंगापुरम के नाम से भी जानते है, आंध्र प्रदेश के तिरूपति शहर के पास तिरुचनूर में स्थित है। यह मंदिर वेंकटेश्वर यानी भगवान विष्णु की पत्नी महाशक्ति माता पद्मावती को समर्पित है। श्री पद्मावती अम्मावरी मंदिर दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है और हर साल हजारों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। भगवान वेंकटेश्वर की पत्नी देवी पद्मावती तिरुमाला की तलहटी में निवास करती हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि तिरुमाला में भगवान वेंकटेश्वर मंदिर के दर्शन से पहले देवी पद्मावती के दर्शन करना जरूरी है। देवी पद्मावती को बेहद दयालु कहा जाता है। वो न सिर्फ अपने भक्तों को आसानी से क्षमा कर देती है बल्कि उनकी हर मुराद भी पूरी करती है।
इस मंदिर का इतिहास 8वीं शताब्दी का है जब मंदिर का निर्माण शुरू में पल्लवों द्वारा किया गया था। बाद में 14वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के शासनकाल के दौरान मंदिर का जीर्णोद्धार और व्यापक रुप में किया गया। मंदिर की वास्तुकला पल्लव, चोल और विजयनगर शैलियों का मिश्रण है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पद्मावती का जन्म सात पहाड़ियों के राजा आकाश राजा की बेटी के रूप में हुआ था। कहते है कि देवी पास के शहर पद्मावती क्षेत्र के एक तालाब में कमल के फूल से प्रकट हुई थीं। जब भगवान वेंकटेश्वर शिकार पर थे तो उन्हें उनकी खोज हुई और उन्हें प्यार हो गया। उनका विवाह एक भव्य समारोह में हुआ, जिसके बारे में माना जाता है कि यह विवाह इसी मंदिर में हुआ था। उनकी शादी का जश्न हर साल नवरात्रि उत्सव के दौरान मंदिर में मनाया जाता है।
श्री पद्मावती अम्मावरी मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ और विजयनगर शैलियों का मिश्रण है।श्री पद्मावती अम्मावरी मंदिर का गोपुरम (मीनार) 40 फीट ऊंचा है और देवी-देवताओं की जटिल नक्काशी से सजाया गया है। मंदिर की दीवारें सफेद संगमरमर से बनी हैं और नक्काशी और चित्रों से सजाई गई हैं। मंदिर परिसर में भगवान शिव, भगवान हनुमान और देवी लक्ष्मी सहित विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित कई छोटे मंदिर शामिल हैं। देवी पद्मावती का मुख्य मंदिर मंदिर परिसर के केंद्र में स्थित है और इसे सोने और कीमती पत्थरों से सजाया गया है।
श्री पद्मावती अम्मावरी मंदिर तिरुपति हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, और भक्तों का मानना है कि देवी पद्मावती से प्रार्थना करने से उन्हें आशीर्वाद, समृद्धि और खुशी मिल सकती है। श्री पद्मावती अम्मावरी मंदिर अपने अनूठे रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है, जिसमें दैनिक आरती और भक्तों को प्रसाद का वितरण शामिल है। मंदिर का मुख्य आकर्षण वार्षिक ब्रह्मोत्सवम उत्सव है, जो नौ दिवसीय कार्यक्रम है जो देश भर से हजारों भक्तों को आकर्षित करता है। त्योहार के दौरान, मंदिर को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है और कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। त्योहार का मुख्य आकर्षण स्वर्ण रथ सहित विभिन्न वाहनमों पर देवी की मूर्ति का जुलूस है।
अपने धार्मिक महत्व के अलावा, श्री पद्मावती अम्मावरी मंदिर स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी एक प्रमुख योगदानकर्ता है। मंदिर की संपत्ति का उपयोग अस्पतालों, स्कूलों और अनाथालयों सहित कई सामाजिक और धर्मार्थ पहलों को वित्तपोषित करने के लिए किया जाता है। मंदिर पुजारियों, मंदिर के कर्मचारियों और विक्रेताओं सहित सैकड़ों लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है।
मंदिर में देवी की चांदी की विशाल मूर्ति है, जो कमल पुष्प के आसन पर पद्मासन मुद्रा में बैठी हैं। माता के दोनों हाथों में कमल पुष्प सुशोभित हैं। इनमें से एक फूल अभय का प्रतीक है तो दूसरा पुष्प वरदान का। मंदिर प्रांगण में कई देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर भी बनाए गए हैं। देवी पद्मावती के अलावा यहां कृष्णृ- बलराम, सुदरा वरदराजा स्वामी और सूर्यनारायण मंदिर भी काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन प्रभु वेंकटेश्वर की पत्नी होने का कारण देवी पद्मावती के मंदिर को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
देवी पद्मावती का श्रृंगार भी तिरुपती भगवान की तरह सोने के वस्त्रों व आभूषणों से किया जाता है। मंदिर के ऊपर एक विशाल ध्वज लहराता है, जिस पर देवी पद्मावती के वाहन एक हाथी की छवि बनी हुई हैं।
पौराणक कथाओं के अनुसार, देवी पद्मावती का जन्म कमल के फूल से हुआ है, जो मंदिर के तालाब में खिला था। इसी मंदिर के तालाब में खिले कमल के फूल से देवी पद्मावती के रुप में माता लक्ष्मी ने जन्म लिया था, जिन्हे भगवान श्री हरि के वेंकटेश्वर स्वरुप की पत्नी कहा जाता है। मां लक्ष्मी 12 सालों पर पाताल लोक में वास करने के बाद 13वें साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को माता पद्मावती के रुप में धरती पर अवतरित हुई।
पद्मावती मंदिर में दर्शन का समय सुबह 5 बजे से शुरु हो जाता है।, जो हर दिन के मुहुर्त के हिसाब से अलग-अलग या 10 से 20 मिनट आगे पीछे रहता है। मुहुर्त के अनुसार ही मंदिर में दर्शन के लिए पूरे दिन में कई बार खुलता और बंद होता है। यहां पर दर्शन के लिए 25 रुपये की पर्ची लेनी पड़ती है।
नवरात्री महोत्सव (दशहरा)
कार्तिके ब्रह्मोत्सवम
थेप्पोत्सवम (फ्लोट उत्सव)
रथसप्तमी
हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति में है। यहां से आप टैक्सी, ऑटोरिक्शा या बस सेवा का इस्तेमाल करके मंदिर पहुंच सकते है।
रेल मार्ग - यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन तिरुपति रेलवे स्टेशन है। यहां से मंदिर की दूरी 5 किलोमीटर ही हैं। महज 20 से 25 मिनट में आप मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - तिरुपति से ये गांव 5 किलोमीटर की दूरी पर है। ये गांव सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। आप आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं।
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