आरती श्री वृषभानुसुता की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि, विमल विवेक विराग विकासिनि।
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि, सुन्दरतम छवि सुन्दरता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की....
मुनि-मन-मोहन, मोहन-मोहिनी, मधुर मनोहर मूरति-सोहनि।
अविरल-प्रेम अमिय रस दोहनि, प्रिय अति सदा सखी ललिता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की....
संतत सेव्य संत मुनि जनकी, आकर अमित दिव्य गुन गनकी।
आकर्षिणी कृष्ण तन मन की,अति अमूल्य सम्पति समता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की....
कृष्णात्मिका कृष्ण सहचारिणि, चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि।
जगजननी जग दुःखनिवारिणि, आदि अनादि शक्ति विभुता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की....
आरती श्री वृषभानुसुता की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।
बोलिये राधारानी सरकार की जय
वैसे तो राधा जी की आरती करने के लिए सभी दिन शुभ माने जाते हैं, लेकिन इन दिनों को विशेष माना जाता है-
राधाष्टमी (भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि)
पूर्णिमा (प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि)
शुक्रवार (सप्ताह का दिन)
इसके अलावा, आप राधा जी की आरती किसी भी शुभ मुहूर्त में कर सकते हैं, जैसे कि:
सुबह के समय (सूर्योदय के समय)
शाम के समय (सूर्यास्त के बाद)
आरती करने से पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। आरती के दौरान राधा जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें और दीपक जलाएं। आरती के बाद, प्रसाद वितरित करें।
आत्मिक शांति: राधा जी की आरती करने से आत्मिक शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।
प्रेम और करुणा की वृद्धि: राधा जी की आरती करने से प्रेम और करुणा की भावना में वृद्धि होती है।
संबंधों में सुधार: राधा जी की आरती करने से संबंधों में सुधार होता है और प्रेमपूर्ण संबंधों की स्थापना होती है।
आध्यात्मिक विकास: राधा जी की आरती करने से आध्यात्मिक विकास होता है और आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है।
कृष्ण प्रेम की प्राप्ति: राधा जी की आरती करने से कृष्ण प्रेम की प्राप्ति होती है और कृष्ण के साथ जुड़ने का अवसर मिलता है।
नकारात्मक ऊर्जा का नाश: राधा जी की आरती करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सुख और समृद्धि की प्राप्ति: राधा जी की आरती करने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में खुशहाली आती है।
व्रत करने वाला पूर्णिमा व संक्रान्ति के दिन सायंकाल को स्नानादि से निवृत होकर पूजा-स्थान में आसन पर बैठ कर श्रद्धा पूर्वक गौरी, गणेश, वरूण, विष्णु आदि सब देवताओं का ध्यान करके पूजन करें और संकल्प करें कि मैं सत्यनारायण स्वामी का पूजन तथा कथा-श्रवण सदैव करूंगा ।
भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं।
बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम।
जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके,कहां उसे विश्राम।
आरती प्रियाकांत जु की , सुखाकर भक्त वृन्द हु की |
जगत में कीर्तिमयी माला , सुखी सुन सूजन गोपी ग्वाला |