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भोर भई दिन चढ़ गया मेरी अम्बे (Bhor Bhee Din Chadh Gaya Meri Ambe)

भोर भई दिन चढ़ गया मेरी अम्बे

हो रही जय जय कार मंदिर विच आरती जय माँ

हे दरबारा वाली आरती जय माँ

ओ पहाड़ा वाली आरती जय माँ

काहे दी मैया तेरी आरती बनावां

काहे दी मैया तेरी आरती बनावां

काहे दी पावां विच बाती

मंदिर विच आरती जय माँ


सुहे चोलेयाँ वाली आरती जय माँ

हे माँ पहाड़ा वाली आरती जय माँ

सर्व सोने दी तेरी आरती बनावां

सर्व सोने दी तेरी आरती बनावां

अगर कपूर पावां बाती

मंदिर विच आरती जय माँ


हे माँ पिंडी रानी आरती जय माँ

हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ

कौन सुहागन दिवा बालेया मेरी मैया

कौन सुहागन दिवा बालेया मेरी मैया

कौन जागेगा सारी रात

मंदिर विच आरती जय माँ


सच्चियां ज्योतां वाली आरती जय माँ

हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ

सर्व सुहागिन दिवा बलिया मेरी अम्बे

सर्व सुहागिन दिवा बलिया मेरी अम्बे

ज्योत जागेगी सारी रात

मंदिर विच आरती जय माँ


हे माँ त्रिकुटा रानी आरती जय माँ

(हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ)

जुग जुग जीवे तेरा जम्मुए दा राजा

जुग जुग जीवे तेरा जम्मुए दा राजा

जिस तेरा भवन बनाया

मंदिर विच आरती जय माँ


हे मेरी अम्बे रानी आरती जय माँ

(हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ)

सिमर चरण तेरा ध्यानु यश गावे

जो ध्यावे सो, यो फल पावे

रख बाणे दी लाज

मंदिर विच आरती जय माँ


सोहनेया मंदिरां वाली आरती जय माँ

(भोर भई दिन चढ़ गया मेरी अम्बे

भोर भई दिन चढ़ गया मेरी अम्बे

हो रही जय जय कार मंदिर विच

आरती जय माँ


हे दरबारा वाली आरती जय माँ

हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ

हे दरबारा वाली आरती जय माँ

हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ

हे दरबारा वाली आरती जय माँ

हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ


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श्री शनिवार व्रत कथा ( Shri Sanivaar Vrat Katha )

एक समय समस्त प्राणियों का हित चाहने वाले मुनियों ने नैमिषारण्य बन में एक सभा की उस समय व्यास जी के शिष्य सूत जी शिष्यों के साथ श्रीहरि का स्मरण करते हुए वहाँ पर आये।

प्रदोष व्रत की कथा (Pradosh Vrat Ki Katha )

प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगती हुई शाम तक घर वापस आती थी।

आरती भगवान श्री चित्रगुप्त जी की (Aarti Bhagwan Shri Chitragupta Ji Ki)

ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित, फलको पूर्ण करे॥

श्री गणपति स्तोत्रम् (Shri Ganpati Stotram)

जेतुं यस्त्रिपुरं हरेणहरिणा व्याजाद्बलिं बध्नता
स्रष्टुं वारिभवोद्भवेनभुवनं शेषेण धर्तुं धराम्।